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विरोध प्रदर्शन और धरना नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है


18 दिसंबर 2024 को विभिन्न मुद्दों पर आयोजित विरोध प्रदर्शन और धरनों को अनुमति न देना लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ माना जा सकता है। यह स्थिति कांग्रेस विचारधारा के संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोगों के अधिकारों की वकालत की है।

कांग्रेस का राजनीतिक दर्शन महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और सरदार पटेल जैसे नेताओं की विचारधारा से प्रेरित है, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शांतिपूर्ण विरोध और सत्याग्रह के समर्थक थे। धरना और विरोध प्रदर्शन लोकतांत्रिक प्रणाली के अभिन्न अंग हैं, और इन्हें रोकने की कोशिश करना न केवल जनतांत्रिक अधिकारों का हनन है, बल्कि यह नागरिकों की आवाज दबाने का प्रयास भी है।

कांग्रेस का मानना है कि जनता की समस्याओं को उठाने और सरकार से संवाद स्थापित करने का यह एक प्रभावी तरीका है। अगर जनता के पास अपने विचार और असहमति व्यक्त करने का मंच नहीं रहेगा, तो यह असंतोष को और बढ़ावा देगा। कांग्रेस विचारधारा हमेशा समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित रही है।

धरने को रोके जाने की घटनाएं यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या वर्तमान सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में सक्षम है। यह स्थिति उन नागरिकों के अधिकारों पर भी चोट करती है, जिनके पास शांतिपूर्ण तरीकों से अपनी मांगें रखने का हक है। कांग्रेस विचारधारा के तहत, जनता की आवाज को दबाने की बजाय उसे सुना जाना चाहिए।

इसके अलावा, कांग्रेस पार्टी का यह भी मानना है कि असहमति को लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाना चाहिए। जब सरकार जन आक्रोश या विरोध प्रदर्शन को दबाने की कोशिश करती है, तो यह केवल सत्ता के केंद्रीकरण को दर्शाता है। कांग्रेस यह सुनिश्चित करने के पक्ष में है कि सभी नागरिकों को समान रूप से अपने विचार व्यक्त करने और मुद्दों को उठाने का अधिकार हो।

कांग्रेस विचारधारा में यह भी कहा गया है कि सरकार की जवाबदेही जनता के प्रति होनी चाहिए। शांतिपूर्ण विरोध का दमन, चाहे वह किसी भी रूप में हो, लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है। इसलिए, 18 दिसंबर 2024 को धरने को न होने देना कांग्रेस और अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों के लिए चिंता का विषय है।

अंत में, कांग्रेस यह मानती है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने और सुनने का अधिकार है। किसी भी प्रकार के दमनकारी कदम, चाहे वे धरने को रोकने के रूप में हों या अन्य रूपों में, केवल लोकतंत्र की नींव को कमजोर करेंगे। कांग्रेस का यही प्रयास है कि इन अधिकारों की रक्षा की जाए और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जाए।


कांग्रेसी नेताओं का कहना


18 दिसंबर 2024 को धरने न होने देने पर कांग्रेस नेताओं ने इसे लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों पर हमला बताया। कांग्रेसी नेताओं ने इसे जनता की आवाज दबाने की कोशिश करार दिया और सरकार के इस रवैये की कड़ी आलोचना की। उनका कहना है कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन और धरना नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है, जिसे किसी भी हालत में छीना नहीं जा सकता।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, "शांतिपूर्ण विरोध करना लोकतंत्र का मूलभूत हिस्सा है। सरकार जनता की आवाज से डर रही है और यही वजह है कि वह हर असहमति को दबाने में जुटी है। लेकिन कांग्रेस पार्टी इस संघर्ष में जनता के साथ खड़ी है और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगी।"

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इसे "लोकतंत्र की हत्या" करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार का यह रवैया स्पष्ट करता है कि वह जवाबदेही से भाग रही है। "धरना और प्रदर्शन जनता की परेशानियों को सामने लाने का माध्यम है। सरकार को जनता की समस्याओं का समाधान करना चाहिए, न कि उनकी आवाज दबाने का प्रयास," उन्होंने कहा।

पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे "तानाशाही रवैया" बताते हुए कहा कि सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए असहमति को कुचल रही है। उन्होंने कहा, "जब एक चुनी हुई सरकार जनता की भावनाओं और विरोध को दबाने का प्रयास करती है, तो यह लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।"

पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि "विरोध प्रदर्शन एक लोकतांत्रिक अधिकार है। सरकार का इसे रोकना यह दिखाता है कि वह जनता की बात सुनने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन कांग्रेस इस लड़ाई को सड़कों से लेकर संसद तक लड़ेगी।"

कुल मिलाकर, कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि सरकार लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस पार्टी जनता के अधिकारों और उनके लिए लड़ने वाले हर मंच पर मजबूती से खड़ी रहेगी। 

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