जातिगत जाति गणना (Caste-based census) सही है या गलत — यह सवाल सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। आइए दोनों पक्षों को संक्षेप में समझते हैं:
जातिगत गणना के पक्ष में तर्क:
1. नीतिगत योजनाओं के लिए सटीक आंकड़े: सरकार को आरक्षण, शिक्षा, रोजगार व विकास योजनाओं को सही दिशा में लागू करने के लिए सही जातिगत आंकड़ों की जरूरत होती है।
2. सामाजिक न्याय की दिशा में कदम: इससे यह पता चलेगा कि कौन-सी जातियाँ अब भी वंचित हैं और उन्हें और सहायता की जरूरत है।
3. वास्तविकता को स्वीकार करना: जब जाति हमारे समाज में एक वास्तविकता है और नीतियाँ जाति आधारित हैं, तो उसके आँकड़े छुपाना या न लेना तर्कसंगत नहीं है।
जातिगत गणना के विरोध में तर्क:
1. जातिवाद को बढ़ावा मिल सकता है: कुछ लोगों का मानना है कि इससे समाज में जातिगत पहचान और भेदभाव और मजबूत होंगे।
2. राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग: आंकड़ों का इस्तेमाल राजनीतिक दल अपने वोटबैंक मजबूत करने के लिए कर सकते हैं।
3. राष्ट्रीय एकता पर असर: इससे समाज में विभाजन की भावना पैदा हो सकती है, जो एकता के लिए खतरा बन सकती है।
निष्कर्ष:
जातिगत गणना अपने आप में न तो पूरी तरह सही है और न ही पूरी तरह गलत। यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उद्देश्य क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है। यदि इसका प्रयोग समाज में समरसता, न्याय और समानता लाने के लिए हो, तो यह एक सकारात्मक कदम हो सकता है।