*"आत्मनिर्भरता या लाचार व्यवस्था? आज़मगढ़ सदर अस्पताल में मरीज ने खुद ही लगाई ऑक्सीजन!"*
*आज़मगढ़:*
उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के सदर अस्पताल से एक बेहद चिंताजनक और मानवता को झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है। ऑक्सीजन की किल्लत या कर्मचारियों की लापरवाही—जो भी वजह रही हो, लेकिन एक गंभीर रूप से बीमार मरीज को अपनी जान बचाने के लिए खुद ही ऑक्सीजन लगानी पड़ी। इतना ही नहीं, बेड की अनुपलब्धता के चलते वह मरीज अस्पताल के फर्श पर बैठा अपनी साँसों की जंग लड़ता रहा।
यह दृश्य न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि 'आत्मनिर्भरता' के नाम पर लोगों को किस हद तक सिस्टम की विफलताओं को ढोना पड़ रहा है।
*प्रशासनिक असफलता या संवेदनहीनता?*
सवाल यह उठता है कि क्या यह वही सरकारी स्वास्थ्य सेवा है जिस पर आम नागरिक भरोसा करता है? अस्पताल के स्टाफ कहाँ थे जब मरीज को तात्कालिक मदद की ज़रूरत थी? क्या अस्पताल में स्टाफ की इतनी कमी है कि गंभीर मरीजों को भी ‘खुद की मदद खुद करो’ की नीति पर चलना पड़ रहा है?
*जिम्मेदार कौन?*
इस पूरे मामले में ज़िम्मेदारी तय होना बेहद ज़रूरी है। यह कोई मामूली चूक नहीं, बल्कि एक जीवन और मौत का सवाल था। प्रशासन को यह स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे हालात क्यों बने, और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।
*सरकारी दावों की पोल खुली*
राज्य सरकार आए दिन स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। यदि एक जिला अस्पताल में मरीज को खुद ऑक्सीजन लगानी पड़े और इलाज के अभाव में फर्श पर बैठना पड़े, तो यह हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र की गंभीर विफलता को उजागर करता है।
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*निष्कर्ष:*
इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया है कि सिर्फ इमारतें और मशीनें ही नहीं, बल्कि संवेदनशील और सक्रिय प्रशासन की भी ज़रूरत है। वरना मरीजों को आत्मनिर्भर बनते-बनते खुद ही अपनी जान की लड़ाई लड़नी पड़ेगी — फर्श पर, अकेले।